नाग पंचमी का पर्व नाग देवता को समर्पित होता है जो हर साल पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन नाग देव का पूजन एवं व्रत किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से सावन का महीना अत्यंत पावन होता है जो भगवान शिव को अति प्रिय है। इस माह में अनेक व्रत एवं त्यौहार होते है और इन्ही में से एक है नाग पंचमी का त्योहार।
क्यों करते हैं नाग पंचमी पूजा?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, नाग पंचमी का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नागों की प्रधान रूप से पूजा की जाती है। सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है जिसके अंतर्गत ऐसा माना गया है कि भू गर्भ से नाग निकल कर भू-तल पर आ जाते हैं। नाग किसी के भी अहित का कारण न बने, इसके लिए ही नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी की पूजा की जाती है।
नाग पंचमी तिथि शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, 8 अगस्त को देर रात 12 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और 10 अगस्त को देर रात 03 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी. इस बार सावन में नाग पंचमी का त्योहार शुक्रवार 9 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. इस दिन पूजा हेतु शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 01 मिनट से लेकर 08 बजकर 37 मिनट पर समाप्त होगी.
नाग पंचमी की पूजा विधि
- नाग पंचमी पर प्रातः काल उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत होने के बाद सर्वप्रथम भगवान शिव का ध्यान करें।
- इसके उपरांत व्रत एवं पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
- अब नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को गाय के दूध से स्नान कराएं।
- दूध से स्नान करवाने के बाद अब जल से स्नान करवाएं।
- स्नान करवाने के पश्चात नाग-नागिन की प्रतिमा का गंध, पुष्प, धूप और दीपक से पूजन करें।
- इसके उपरांत नाग-नागिन की प्रतिमा को हल्दी, रोली, चावल और फूल भी अर्पित करें।
- अब घी और चीनी मिला कच्चा दूध चढ़ाएं।
- इसके बाद सच्चे मन से नागदेवता का ध्यान करते हुए उनकी आरती करें।
- सबसे अंत में नाग पंचमी की कथा पढ़ें या सुनें।
नाग पंचमी की तिथि पर मुख्य रूप से आठ नाग देवताओं की पूजा का विधान है। इन अष्टनागों के नाम है: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय। इनकी पूजा किसी भी व्यक्ति के लिए फलदायी साबित होती है। भविष्योत्तर पुराण में नाग पंचमी के संबंध में एक श्लोक लिखा है। जो नीचे दिया गया है –
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥
पौराणिक मान्यता के अनुसार, धन की देवी मां लक्ष्मी की रक्षा नाग देवता ही करते हैं, साथ ही नाग पंचमी के दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग की उपासना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
नाग पंचमी का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में नागों को विशेष स्थान प्राप्त है इसलिए इन्हे पूजनीय माना गया है। नाग देवता को भगवान शिव ने अपने गले में हार के रूप में धारण किया हैं, वहीं शेषनाग रूपी शैया पर भगवान विष्णु विराजमान रहते है। सावन माह के आराध्य देव भगवान शंकर को माना गया हैं।
ऐसी मान्यता है कि अमृत सहित नवरत्नों को प्राप्त करने के लिए जब देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया था, तब संसार के कल्याण के लिए वासुकि नाग ने मथानी की रस्सी के रूप में कार्य किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।
भोलेनाथ के गले में भी नाग देवता वासुकि लिपटें रहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नाग पंचमी के दिन नाग देवता की आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नाग पंचमी से जुड़ीं मान्यताएँ
पुराणों के अनुसार,सर्प के दो प्रकार बताए गए हैं: दिव्य और भौम। वासुकि और तक्षक को दिव्य सर्प माना गया हैं जिन्हे पृथ्वी का बोझ उठाने वाला तथा अग्नि के समान तेजस्वी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये अगर कुपित हो जाए तो अपनी फुफकार मात्र से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकते हैं।
पुराणों के अनुसार, सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए, लेकिन उनकी तीसरी पत्नी कद्रू का सम्बन्ध नाग वंश से था, इसलिए उनके गर्भ से नाग उत्पन्न हुए। सभी नागों में आठ नाग को श्रेष्ठ माना गया है और इन अष्ट नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे जन्मजेय। उन्होंने सर्पों से प्रतिशोध व नाग जाति का विनाश करने के लिए नाग यज्ञ सम्पन्न किया था क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई थी। इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश की रक्षा हेतु रोका था। इस यज्ञ को जिस तिथि पर रोका गया था उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। ऐसा करने से तक्षक नाग और समस्त नाग वंश विनाश से बच गया था। उसी दिन से ही इस तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाने की प्रथा प्रचलित हुई।
नाग पंचमी संयोग
इस बार नाग पंचमी पर कई योग बनने वाले हैं. इनमें शिववास योग, सिद्ध योग, साध्य योग, बव और बालव, करण योग शामिल है. इस बार नाग पंचमी हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग में मनाई जाएगी. इन दुर्लभ संयोग में पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलेगी और जीवन सुख-समृधि से भर जाएगा.
शिववास योग
वैदिक पंचांग के अनुसार नाग पंचमी पर दुर्लभ शिववास योग का निर्माण हो रहा है. इस दिन भगवान शिव कैलाश पर जगत जननी मां पार्वती के साथ रहेंगे. इस समय में शिव परिवार संग नाग देवता की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी. साथ ही नाग देवता का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा.
सिद्ध और साध्य योग
नाग पंचमी पर सिद्ध योग का भी संयोग बना रहा है. सिद्ध योग दोपहर 1:46 तक रहेगा. इस दौरान भगवान शिव की पूजा आराधना करने से सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी. इसके बाद साध्य योग का निर्माण हो रहा है.
बालव करण योग
नाग पंचमी पर बल और बालव करण योग का योग का भी निर्माण हो रहा है. इस दौरान भगवान शिव और नाग देवता की पूजा करने से सभी संकट दूर होते हैं और उत्तम फल की प्राप्ति होती है.