गणेश चतुर्थी का त्योहार हर साल भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से शुरू होती है। ये पर्व पूरे 10 दिन तक गणेश उत्सव के रूप में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। गणेश उत्सव का पर्व महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दौरान विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है। ये पर्व विनायक चतुर्थी पर शुरू होती है और अनंत चतुर्थी पर समाप्त होती है। इस समय लोग अपने घर में बप्पा की मूर्ति स्थापित करते हैं और उनकी सच्चे मन से पूजा और भक्ति करते हैं। आइए जानें इस साल कब से शुरू होगी गणेश चतुर्थी और कब होगा इसका समापन।
इस साल शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 6 सितंबर की दोपहर 3 बजकर 1 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 7 सितंबर की शाम 5 बजकर 37 मिनट पर होगा. वहीं उदया तिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी 7 सितंबर शनिवार को मनाई जाएगी.
गणेश चतुर्थी पूजन विधि-
गणेश चतुर्थी वाले दिन आप सूर्योदय से पहले उठ कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं. अब घर के मंदिर की साफ-सफाई कर गंगा जल से छिड़काव करें. इसके बाद भगवान गणेश को प्रणाम कर तीन बार आचमन करें. अब बप्पा की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद भगवान गणेश को जनेऊ, वस्त्र, चंदन, दूर्वा, धूप, अक्षत, दीप, पीले फूल और फल अर्पित करें. पूजा करते समय भगवान गणेश को 21 दूर्वा जरूर अर्पित करें. दूर्वा अर्पित करते समय ‘श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि’ मंत्र का जप करें. भगवान गणेश को लड्डू और मोदक का भोग लगाएं. पूजा के अंत में बप्पा की आरती करें और प्रसाद बांटें.
गणेश चतुर्थी स्पेशल भोग-
1. लड्डू-
भगवान गणेश को लड्डू का भोग लगाया जाता है. आप बेसन या बूंदी से बने लड्डू का भोग लगा सकते हैं.
2. मोदक-
इसके अलावा बप्पा को मोदक बहुत ही पसंद माने जाते हैं. पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि गणेश जी बचपन में अपनी मां माता पार्वती के द्वारा बनाए गए मोदक पलभर में चट कर जाते थे.
गणेश चतुर्थी के पीछे की कहानी
गणेश चतुर्थी इसलिए मनाई जाती है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन माता पार्वती के पुत्र गणेश जी का जन्म हुआ था.
गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है इसको लेकर कई मान्यताएं हैं जैसे कि भाद्रपद मास की चतुर्थी को ही गणेश जी ने महाभारत को लिखना शुरू किया था.
ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन ही शिव जी ने गणेश जी को पुनर्जीवित किया था. आपने कहानियों में देखा होगा कि शिव जी ने गुस्से में गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया था. इसके बाद माता पार्वती की नाराज़गी को दूर करने के लिए शिव जी ने गणेश जी को हाथी का मस्तक लगाकर जीवनदान दिया था. इसलिए भी इसी दिन हम गणेश चतुर्थी मनाते हैं.
क्यों मनाई जाती हैं गणेश चतुर्थी?
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था. गणेशोत्सव के दौरान सभी लोग बप्पा घरों में विराजमान होते हैं और 10 दिनों तक उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है. किसी भी नए काम की शुरूआत से पहले भगवान गणेश की पूजा करने की परंपरा है. गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है जो आपके जीवन में आने वाले सभी दुख- दर्द को दूर करते हैं. गणेश उत्सव मनाने की परंपरा महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से ही है.
गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन क्यों वर्जित ?
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना वर्जित है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा देखने से मिथ्या दोष लगता है. पौराणिक मान्याताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा देखा था, इसलिए कान्हा पर चोरी का झूठा आरोप लगा था.
गणेश चतुर्थी का इतिहास
गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की राजधानी पुणे से हुई थी. गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा है. मान्यता है कि भारत में मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने हेतु छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी.
छत्रपति शिवाजी द्वारा इस महोत्सव की शुरुआत करने के बाद मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेश महोत्सव मनाने लगे. गणेश चतुर्थी के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और साथ ही दान पुण्य भी करते थे. पेशवाओं के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी लेकिन फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को दोबारा मनाने की शुरूआत की. इसके बाद 1892 में भाऊ साहब जावले द्वारा पहली गणेश मूर्ति की स्थापना की गई थी.
कैसे हुई गणपति विर्सजन की शुरूआत?
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना करने की मान्यता है और उसके 10 दिन बाद उनका विसर्जन किया जाता है. कई लोग यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि आखिर भगवान गणेश को इतनी श्रृद्धा के साथ लाने और पूजने के बाद उन्हें विसर्जित क्यों किया जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे एक बेहद ही महत्वपूर्ण कथा छिपी हुई है.
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना कीथी. गणेश चतुर्थी के ही दिन व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी उसे लिखित रूप में करते गए. 10 दिनों तक लगातार लेखन करने के बाद गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परतें चढ़ गई थी. गणेश जी ने इस परत को साफ करने के लिए ही 10 वें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी में स्नान किया था तभी से गणेश जी को विधि-विधान से विसर्जित करने की परंपरा है.