नवकार मंत्र का जाप कर विद्यासागरजी और दौलतसागरजी को दी विनयांजलि

जैन समाजजन ने देवलोकगमन पर दोनों आचार्यों को किया नमन

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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन आचार्य 108 विद्यासागरजी और परम पूज्य गच्छाधिपति दौलतसागरजी का देवलोक गमन जैन धर्म ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के लिए अपूर्ण क्षति है।

श्री दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट नमकमंड़ी के अध्यक्ष प्रकाश कासलीवाल और सचिव अनिल गंगवाल ने बताया कि पूज्य गुरु भगवंत के देवलोकगमन से ट्रस्ट मंडल के साथ ही सम्पूर्ण समाज में शोक की लहर है। पृथ्वीलोक में रिक्तता कर गई यह दोनों भव्यात्मा देवलोक में सितारा बन स्थापित हो गई। शारीरिक रूप से भले ही गुरुभगवंत हमारे बीच नहीं रहे पर सभी गुरु भक्तों की आत्मा में गुरुजी अजर अमर रूप से निवासरत रहेंगे।

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यह भारतवर्ष के समस्त जैन समुदाय के लिए सबसे बड़ा दु:खद दिवस है। दिगम्बर और श्वेेतांबर समुदाय के सबसे बड़े दो महान संत जिनकी सौम्यता उनकी सुगंध और आनंद उनका जीवन था, वे धर्म को कभी भूलें नहीं, ऐसी दिव्य आत्माएं थी। ट्रस्ट मंडल ने दोनों महान संतों को विनयांजलि देते हुए उनकी स्मृतियों को जीवंत बनाये रखने के लिए प्रतिवर्ष उनकी याद में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया।

धर्मसभा में गुरुदेव के कार्यों को किया याद

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उज्जैन। आचार्य मुक्तिसागर सूरिश्वर महाराज एवं आचार्य अचलमुक्ति सागरसूरिजी आदि का प्रवेश श्री ऋषभदेव छगनीरामजी की पेढ़ी खाराकुंआ पर हुआ। इसके पूर्व कांच का मंदिर दौलतगंज से मंगल प्रवेश चल समारोह (सामैया) प्रारंभ हुआ जो कि सखीपुरा आदि प्रमुख मार्गों से निकलकर खाराकुआ पहुंचा जहां धर्मसभा हुई। महाराजश्री के प्रवचन के दौरान ही गच्छाधिपति दौलतसागर सूरिश्वरजी के पूना में हुए कालधर्म का समाचार मिलते ही समस्त श्रीसंघ स्तब्ध रह गया। चतुर्विधि श्री संघ के तत्वावधान में उनकी आत्मशांति के लिए सभी ने 12 नवंकार मंत्र का स्मरण किया। आचार्यश्री ने कहा कि वे परम उपकारी गुरूदेव थे। आज से 25 वर्ष पूर्व आपने ही पूना में मुझे गणि पदवी प्रदान की थी। उसके बाद ही पन्यास आचार्य पदवी हो सकी। आप 85 वर्ष के संयम पर्यायी एवं 103 वर्ष की उम्रवाले श्रुतस्थविर थे। अशोक भंडारी ने बताया कि 19 फरवरी को अचार्यश्री का अभ्युदयपुरम में प्रवेश होगा एवं 21, 22 तथा 23 जनवरी को प्रथम वर्षगांठ निमित्त त्रिदिवसीय भव्य महोत्सव होगा।

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